गोपाष्टमी आई रे भैया, गायों की पूजा करिए
धेनु सजाइए फूलों से, चरणों में दीप धरिए।
गौ माता आईं आँगन में, सुख समृद्धि संग लाईं,
लक्ष्मी रूप विराजे इनमें, वेदों की छाया पाई।
गंगा सम पावन तन इनका, अमृत नाभि में बसता,
देव बसे हर अंग-अंग में, पुण्य का दीपक जलता ....गोपाष्टमी आई रे भैया ......
कपिला, नन्दिनी, देवनी गौ, वशिष्ठ ने की रचना,
गोबर, गौमूत्र, दूध, दही से, औषधि बनी अमृतना।
आश्रमों में पूजित गौ थी, पंचगव्य से कायाकल्प,
धेनु बिना अधूरा जीवन, यही वेदों का है तत्त्व ....गोपाष्टमी आई रे भैया,.....
धेनु सजाइए फूलों से, चरणों में दीप धरिए।
प्रभात में वन को भेजें हम, सायं फिर स्वागत करें,
बछड़ों संग लौटें जब गौ, आरती संग वंदन करें।
बृज, मथुरा, वृंदावन गूंजे, गोपाष्टमी की जय,
गौ सेवा से फल सब मिलते, यही धर्म की राह भले....गोपाष्टमी आई रे ...
.... कविता रावत

1 टिप्पणी:
सुंदर चित्र बना दिया छंदों के माध्यम से
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