कुछ शर्माती कुछ सकुचाती
जब आती बाहर वो नहाकर
मन ही मन कुछ कहती
उलझे लट सुलझा सुलझाकर
झटझट झटझट झरझर झरझर
बूंदें गिरतीं बालों से पल-पल
दिखतीं ये मोती सी मुझको
या ज्यों झरता झरने का जल
झर झर झरता झरने सा जल
झर झर झरता झरने सा जल
तिरछी नजर घुमाती वो
अधरों पे मदिर मुस्कान लिए
कभी निहारे एकटक होकर
पलकों ज्योँ आराम दिए
हँसमुख चेहरा लुभाता उसका
सूरत दिखती भोली-भली
कभी लगती खिली फूल सी
कभी दिखती कच्ची कली
खिला यौवन उपवन जैसा
नाजुक कली सुकोमल गात
वो वसंत की चितचोर डाली
मैं पतझड़ सा बिखरा पात
34 टिप्पणियां:
...सुन्दर रचना!!!
bahut hi behtareen rachna.....
achha warnan....
yun hi likhte rahein..
regards...
meri nayi kavita bhi jaroor padhein...
वाह !!....बसंत को बहुत ख़ूबसूरती और चंचलता के साथ आपने पेश किया है .........बहुत ही लाजवाब रचना .
पट-पट-पट,झटक-झटककर
बूंदें गिरतीं बालों से पल-पल
वाह बसंत का मानवीकरण आपने बहुत सुन्दरता से किया है
बहुत सुन्दर
बहुत उम्दा!
खूबसूरत रचना
हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।
...उम्दा.."
तिरछी नजर घुमाती वो
अधरों पर मदिर मुस्कान लिए
कभी एकटक निहारती
पलकों को जैसे आराम दिए
बहुत सुन्दर रचना कविता जी , एक बात और कहूंगा कि जिस पेड़ का चित्र आपने साथ में लगाया उस पर लगे फलों को देख मुह में पानी आ गया ! खटाई बहुत प्रिय डिश हुआ करती थी कभी सर्दियों की दोपहर की !
बहुत ही ख़ूबसूरत, रचना
कविता जी मन प्रसन्न हुआ। एक सुझाव है। अगर हर चार पंक्तियों के बीच आप एक एंटर स्पेश दे देंती तो रचना पढ़ने में और आनंद आता। क्योंकि कविता की चार-चार पंक्तियां अपने आप में संपूर्ण हैं। बधाई।
wo basant ki chitchor daali............:)
Kavita jee.......aapne to apne andar male figure ko feel karke badi pyari baat kah daali........hai na!!
Kash!! aise soch ham me bhi aata........:P
bahut khubsurat........bahut pyari
RACHNA!!
कमाल है कविता जी...क्षमा चाहूँगा ..शुरूआती पंक्तियों को पढकर लगा जैसे किसी पुरुष के मुख से सद्यःस्नाता स्त्री का वर्णन है... बहुत खूब..
वो वसंत की चितचोर डाली
मैं पतझड़ सी बिखरी बिखरी!
बहुत सुन्दर प्रकृति-चित्रण. सुन्दर रचना
उत्तम अभिव्यक्ति।
खूबसूरत शब्दों से संजोयी खूबसूरत रचना.... खूबसूरती से दिल को छू गई....
बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
वसंत का बहुत खूबसूरत वर्णन ...मगर वसंत में पतझड़ का क्या काम ...झूम लीजिये वसंत के संग में ...पतझड़ भी सावन हो जाएगा ...!!
हँसमुख चेहरा लुभाता उसका
सूरत दिखती भली-भली
कभी लगती खिली फूल सी
कभी दिखती कच्ची कली
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! बढ़िया रचना !
वो वसंत की चितचोर डाली
मैं पतझड़ सी बिखरी बिखरी!
क्यूँ खुद को भी ऐसा ही बना डालिए - सुंदर रचना के लिए बधाई
bahut sundar kavita .
वाह क्या रचना प्रस्तुत की आपने..सुंदर भावपूर्ण और लयबद्ध वाकी बहुत सुन्दर रचना है बसंत का सजीव वर्णन ..आभार
पट-पट-पट,झटक-झटककर
बूंदें गिरतीं बालों से पल-पल
दिखतीं ये मोती सी मुझको
या ज्यों झरता झरने का जल
Sundar bhaav .. lay liye .. basant ka jeeta jaagta varnan kiya hai aapne ... bahut madhur rachna ..
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो प्रशंग्सनीय है!
बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति।
kavi kee kalam basant kee daali kisi heer se kam nahin
गर्मी के मौसम मे बसंत की कविता पढ़कर अच्छा लगा
aapne mere blog gaurtalab par aakar mera hausla badhaya..Shukriya!
main jab aapki rachnaye padhata hoon to mujhe apni sachayi ka ehsas ho jaaa hai..jaise "sagar mein gagar"
हाय गजबे हो आंटी !!
कुछ शर्माती कुछ सकुचाती
आती बाहर जब वो नहाकर
मन ही मन कुछ कहती
उलझे बालों को सुलझाकर
वाह....!
छंदबद्ध सुंदर शब्द बंधन .....!!
लाजवाब पेशकश!
वाह वाह वाह !!!
sarachnayen sachmuch utkrist hain.
AAP PRERNA KI DEVI HO PARNAAM
जन्हा एक ओर बाढ़ से लोग परेशान हैं
वन्ही बसंत के आगमन का मधुर सन्देश
मन को सुकून पंहुचाता है. |
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