अब वह दिल की धड़कन कहाँ से लाऊंगा मां! - Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
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शनिवार, 10 मई 2025

अब वह दिल की धड़कन कहाँ से लाऊंगा मां!





जब-जब भी मैं तेरे पास आया
तू अक्सर मिली मुझे छत के एक कोने में
चटाई या फिर कुर्सी में बैठी
बडे़ आराम से हुक्का गुड़गुड़ाते हुए
तेरे हुक्के की गुड़गुड़ाहट सुन
मैं दबे पांव सीढ़ियां चढ़कर
तुझे चौंकाने तेरे पास पहुंचना चाहता
उससे पहले ही तू उल्टा मुझे छक्का देती
मेरे कहने पर कि-
'तू तो देखती-सुनती कम है
फिर तुझे कैसे पता चला'
तू मुझे बतियाती-
बेटा, 'एक मां की भले ही नजर कमजोर पड़ जाए
लेकिन उसकी दिल की धड़कन कभी कमजोर नहीं पड़ती
उसे आंख-कान से देखने-सुनने की जरुरत नहीं पड़ती'
अब मैं वह दिल की धड़कन कहां से लाऊंगा!

कभी एक-दो दिन बात करना भूल क्या जाता मैं कि
तुझे होने लगती थी मेरी भारी चिंता
और तू शिकायत के साथ फोन मिलाती मुझे
फिर पूछने बैठती-
'क्यों, क्या, सब ठीक तो है, मुझे बड़ी चिंता हो रही है'
ऐसे जाने कितने ही सवाल एक साथ दाग देती
मैं चुपचाप सुनकर तुझसे कहता-
'तू हमारी नहीं अपनी चिन्ता किया कर
तू हमारी चिन्ता करके क्या करेगी?'
मेरे यह कहने पर तू मुझे समझाती-
'बेटा, मां हूं न इसीलिए सबकी चिंता-फिकर करती हूं 
अब मुझे वह चिन्ता- फ़िक्र करने वाला कहां मिलेगा!

मां के लिए बेटे की पुकार
.....कविता रावत