Kavita Rawat Blog, Kahani, Kavita, Lekh, Yatra vritant, Sansmaran, Bacchon ka Kona
ब्लॉग के माध्यम से मेरा प्रयास है कि मैं अपनी कविता, कहानी, गीत, गजल, लेख, यात्रा संस्मरण और संस्मरण द्वारा अपने विचारों व भावनाओं को अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्व निर्वहन के साथ-साथ सरलतम अभिव्यक्ति के माध्यम से लिपिबद्ध करते हुए अधिकाधिक जनमानस के निकट पहुँच सकूँ। इसके लिए आपके सुझाव, आलोचना, समालोचना आदि का हार्दिक स्वागत है।

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

मत भरो शूलों से दामन अपना

अप्रैल 23, 2010
कभी वक्त ने करके मजबूर जिन्हें कर दिया जुदा गुजरे पलों को जिसने ख़ामोशी से दिल में सहेज लिया उनसे ही सीखा सबक प्यार का दुनिया वालों ने जि...
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शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

बुधवार, 17 मार्च 2010

सौभाग्य जब भी आए वही उसका सही समय होता है

मार्च 17, 2010
मामूली दुश्मन या घाव की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए दुश्मन अगर चींटीं भी हो तो उसे हाथी समझना चाहिए भेड़िये की मौत पर भेड़ अपनी खैर मनाता है ...
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रविवार, 7 मार्च 2010

सब चलता रहता है

मार्च 07, 2010
गाँव हो या शहर आज जब भी कोई घटना, दुर्घटना या सामाजिक सरोकार से सम्बंधित कुछ अहम् बातें सामने आती है तो अक्सर बहुत से लोगों को बड़े सहजता स...
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शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

सोमवार, 8 फ़रवरी 2010

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

गुरुवार, 28 जनवरी 2010

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

जरा होश में आओ

जनवरी 26, 2010
हमारे देश को गणतंत्र दिवस मानते हुए 60 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं, बावजूद इसके यह सोचनीय स्थिति है कि इतने वर्ष बीत जाने पर भी देश में जाति,...
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शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

बुरी आदत

जनवरी 22, 2010
कभी-कभी कुछ लोकाक्तियों के माध्यम से जिसमें मनुष्य की विवशता की हँसी या किसी वर्ग विशेष पर कटाक्ष परिलक्षित होता है, उसे एक सूत्र में गू...
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सोमवार, 18 जनवरी 2010

शुक्रवार, 8 जनवरी 2010

सूनापन

जनवरी 08, 2010
नव वर्ष के आगमन पर ब्लॉग पर किसी को भी शुभकामनाएं नहीं दे पाई, जिसका मुझे बेहद अफ़सोस है. जबकि मैंने सोचा था कि इस वर्ष मैं ब्लॉग पर पहली ...
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शनिवार, 19 दिसंबर 2009

बुधवार, 16 दिसंबर 2009

देश की जो रीति पहले थी वह समझो अब तक है जारी

दिसंबर 16, 2009
देश में एक ओर जहाँ शांतिप्रिय श्रीरामजी ने राज किया वहीँ दूसरी ओर अत्याचारी घमंडी रावण ने भी राज किया दोनों ओर ही थे धुरंधर यौद्धा और ...
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शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

फिर वही बात हर किसी ने छेड़ी हैं

दिसंबर 11, 2009
अक्सर एकाकीपन ही मुझे अच्छा लगता अपनेपन से भरा साथ मिले किसी का जैसे यह दिखता कोई सुन्दर सपना है अपने पास तो आंसू ही शेष ऐसे दिखते जो...
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